आवाजों के जंगल में
आवाजों के जंगल में
आवाज़ों के जंगल में
ना जाने क्यों विरानी छाई है !
क्या मैंने कहा, क्या तुमने सुना
किसी को समझ ना आई है!
कहा सुनी के इस भ्रमजाल ने
चितवन में आग लगाई है!
कोई सावन यहां से गुजर जाए
बूंदों के बाण चला जाए और!
विरान पड़े आवाज़ों के जंगल में
फिर से कल-कल निनाद करा जाए
ऐसी दिल में इक लहर उठ आई है !!