हम खानाबदोश हुए
हम खानाबदोश हुए
जिनके घरों में शीशे हैं
वो कुछ इस तरह मेहरबाँ हुए
हम कहीं के न रहे,
हम खानाबदोश हुए!
साँसों को भी उन्होंने न
हमारी छोड़ रखा ज़ालिम
डरते हैं खुली हवा में साँस लेने से
हम पर्दानशीं हुए!
आज राह ली है
अम्मा तेरी डेहरी पे आएँगे
पर सोचता हूँ
क्या वहाँ भी ठुकरा दिए जाएँगे?
देखो हमने भी सिख ली है
सोशल डिसटेंसिंग!
लॉकडाउन उनका हुआ
हम न घर के हुए ना घाट के हुए।