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Aarti thakur Learning to share

Abstract

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Aarti thakur Learning to share

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अंत

अंत

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280

गिले - शिकवे 

शिकवे - शिकायतें

रूठना - झगड़ना

अपने अस्तित्व के लिए लड़ना

दूसरे के अस्तित्व को कम आँकने के लिए बहकना

अंत कहाँ है इन बातों का

ये चलती रहेंगी अंतहीन

एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक

बस एक मोड़ रुकेंगी 

पर हाँ!

ये गलती न करना 

कि ये रुक गई हैं

ये कभी नहीं रुकती हैं

चलती रहती हैं

अंतहीन..........

अगर तुम चाहो, 

मै तुम्हें इनसे बचकर निकलने का रास्ता 

बता सकती हूँ.......

अपने रास्ते में अकेले ही चलना......

न सोचना कि कोई पीठ थपथपाए

न सोचना कि कोई हाथ बँटा जाए.....

न रहना गुमान में कि तुम ही अकेले हो मैदान में

न मचाना यह शोर कि जानते हो सारे सच जो छिपे हैं दामन में......

कोई तुम्हारी तारीफ़ करे तो खुश न होना,

कोई सफलता की बधाई दे तो फूले न समाना.....

धीरे धीरे फुसफुसाहट को तो कोई तवज्जो ही नहीं देनी है,

भई जब शिकायत पर्दे में है तो आपको क्यू परेशानी है?



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