सराय
सराय


कुछ नया नहीं
वही पुरानी बात
वही पुराना दर्द
पर उभर आता है
जब जब मेरे अपने आते हैं
घोंसले में ठहरने दो दिन
याद आ जाता है
अब उनकी और हमारी राह अलग है
सोच टकराती है
सुबह उठने उठाने पर से
नज़र कहीं बचतीं है
कहीं ख़ुद को बचाती है
तुम्हारी माँ अक्सर
बीच बचाव में ही थक जाती है
वो सारी ग़लतियाँ जो तुम्हारे हिसाब से
तुम्हारी परवरिश में हमसे रह गईं
तुम और तुम्हारे बच्चे मिलकर
उनक
ा हिसाब लगाते हो
और मैं और वो यह सोचकर
हिसाब बराबर नहीं करते
कि अजी, अपने ही बच्चे हैं।
महिने भर पहले से तैयारियाँ शुरू होती हैं
पानी कहीं कम न पड़े इसका इंतज़ाम होता है
किसको क्या पसंद है,
किसको क्या ज़रूरी,
हर चीज़ का ख़ूब बखान होता है
पर जब तुम आते हो
तुम्हें यह सब बोझ लगता है
मेरी पत्नी के पसीने में सना खाना
तुम्हें दकियानूस लगता है
तो जाओ अब इस सराय में न ही आना
तुम इसी लायक़ हो
किसी सराय में ही जाकर खाना