खानाबदोश ज़िन्दगी खानाबदोश ज़िन्दगी
हम कहीं के न रहे, हम खानाबदोश हुए! हम कहीं के न रहे, हम खानाबदोश हुए!
जितने तुम हर खानाबदोश हुये। जितने तुम हर खानाबदोश हुये।
हज़रत-ए-दीन, सबकी निग़ाहों की नज़र बन, असद-ए-अमाल रोशन हुए जाती है... हज़रत-ए-दीन, सबकी निग़ाहों की नज़र बन, असद-ए-अमाल रोशन हुए जाती है...
नासमझ हूं मैं, ज़िंदगी को अपनी खानाबदोश सा बना रखा है। नासमझ हूं मैं, ज़िंदगी को अपनी खानाबदोश सा बना रखा है।
अकेलापन तो न जैसे कभी छुआ था उनको, घर की हर दीवार जैसे किस्से से हो सुनाती। अकेलापन तो न जैसे कभी छुआ था उनको, घर की हर दीवार जैसे किस्से से हो सुनाती।