STORYMIRROR

Dinesh paliwal

Tragedy

4  

Dinesh paliwal

Tragedy

।। दीवारें ।।

।। दीवारें ।।

1 min
520

अकेलापन तो न जैसे कभी छुआ था उनको,

घर की हर दीवार जैसे किस्से से हो सुनाती,

उन के घर की दीवारों के भी मुँह थे गोया,

ताउम्र रही ख्वाइश कि मेरी भी बोल पातीं। 


दर्द न कभी साझा किया अपना महफिलों में उसने,

कोई रुसवाई भी निकल बाहर घर के नहीं आती,

उनकी दीवारों के जरूर कुछ कान रहे होंगे,

मेरी तो आज तलक भी कुछ नहीं हैं सुन पातीं।। 


एक शिकन न रंज कभी उनके लफ़्ज़े बयाँ में था,

जैसे कि जमाने से उन्हें न था कभी गुरेज़ कोई,

वो शायद रो लेते होंगे अपनी दीवारों से लिपट कर,

मुझे तो आपनियों से न कोई आस नज़र आती।। 


दरो दीवार भी उनकी दोस्त है इतनी मुक्कदस,

कि ऐहतराम की सदाह हर दरीचे से है आती,

खानाबदोश हुए हम छोड़ दिया दर और वो दीवारें,

ये दीवारों से बंधी जिंदगी अब हमें और नहीं भाती।। 




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy