मेरी शायरी
मेरी शायरी
बद काबिज बदइंतजाम़ी है,
लोकतंत्र में छाई बदअमली है।
जवन जवाज़ जवाँबख्त़ हूं,
जब्र जब्बार बदबख्त़ नहीं हूं।
इतनी तो हरख न हुयी,
जितने तुम हर खानाबदोश हुये।
बद काबिज बदइंतजाम़ी है,
लोकतंत्र में छाई बदअमली है।
जवन जवाज़ जवाँबख्त़ हूं,
जब्र जब्बार बदबख्त़ नहीं हूं।
इतनी तो हरख न हुयी,
जितने तुम हर खानाबदोश हुये।