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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Drama

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Drama

मेरी शायरी

मेरी शायरी

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बद काबिज बदइंतजाम़ी है,

लोकतंत्र में छाई बदअमली है।


जवन जवाज़ जवाँबख्त़ हूं,

जब्र जब्बार बदबख्त़ नहीं हूं।


इतनी तो हरख न हुयी,

जितने तुम हर खानाबदोश हुये।


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