लेखक : बोरिस पास्तरनाक अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : बोरिस पास्तरनाक अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
कोहरे से आच्छादित है गगन फिर से चली जो पछुआ पवन। कोहरे से आच्छादित है गगन फिर से चली जो पछुआ पवन।