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अनजान सफर

अनजान सफर

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अनजाने सफऱ पर में चल पड़ा हूं

रास्ता खोजते खोजते गिर पड़ा हूं

फ़िर भी हिम्मत टूटी नहीं है मेरी,

रोते रोते ही फ़िर से मैं हँस पड़ा हूं

ये सफ़र है इश्क़ का अनजाना सा

किसी अनजान से इश्क़ करने चला हूं

मोहब्बत लगती तो है शबनम जैसी है,

करने पर महसूस हुआ है

शोले को छू पड़ा हूं


जीत होगी या फिर मेरी हार होगी

बिना सोचे ही सफ़र पर चल पड़ा हूं

सफ़र कभी मीठा लगता है,

सफ़र कभी खट्टा लगता है,

मोहब्बत में आँख बंद कर चला हूं

ये सफ़र मेरे मौला न जाने कब खत्म होगा


इस सफ़र में,अनजान शीशे पर गिर पड़ा हूं

हे मेरे प्यारे अनजाने से सफ़र

ज़रा सी उनको भी दे तू ख़बर

ख्वाबों में भी, में तो चल रहा हूं

अनजान "साखी' तेरे लिए

कहीं रातों से चलता रहा हूं

अब तो खत्म हो जा न अनजान सफ़र

अब तो सांसों को ही में छोड़ चला हूं



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