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Renu kumari

Abstract Drama Tragedy

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Renu kumari

Abstract Drama Tragedy

अधूरी मोहब्बत

अधूरी मोहब्बत

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कुछ बात तो थी तुझमे भी 

जो इस कदर मंजिलें यूँ टकरा गई।

उस राह पे मुसाफिर तो काफी थे

पर नज़र तो सिर्फ तुझी पे आगई।


सोचती हूँ तुझे तो लगता हैं

की ये मुश्कान मेरी देखो मुझसे ही शर्मा गई।

कल तक घूमती थी जो बेफ़िक्र हो

आज तन्हा हुए उस घर मे घभरा गई।


तू कुछ इस कदर अकेले छोड़ गया मुझे

की किस्मत भी मुझसे कतरा गई।

लोग कहते है मोहब्बत में शाहजहां ने ताज बनाया था

पर जनाब वही मोहब्बत तो मुमताज का मक़बरा भी बना गई। 

महफ़िलों मे जो लेजाया करता था तो मुझे 

आज मेरी मोहब्बत का अंजाम देख

वो महफ़िल भी मुझपर मुश्कुरा गई।

तूने दिल क्या तोड़ा मेरा जाना

वो पल मेरे मौत का फरमान लेकर गई।


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