आखिरी पड़ाव
आखिरी पड़ाव
रास्ते में जा रहा था मैं, बेफिकर घूमे जा रहा था मैं
वो रास्ता एक गली तक ले गयी, गली ने पता दिया
मैं पता को ढूँढता गया, पते में एक मंजिल थी
मैंने मंजिल की तलाश की, वहाँ मुझे तुम मिली
मेरे गले में खराश थी, मैं कुछ बोल पाता इससे पहले तुम चली गयी
पास ही एक दुकान थी, मैंने वहाँ से दवा ली
फिर मुझे तराश लगी, कुछ पीने की चाह हुई
मैंने एक घर देखा, मैंने वहाँ चाय की माँग की
मेरे मन में अब भी मंजिल की चाह थी
वहाँ कोई ना बात हुई, मैंने चुप चाप चाय ली
मैने सबका धन्यवाद किया और वहाँ से चल दिया
तभी मेरे कानों में एक आवाज़ आयी जो मंजिल की गुहार थी
जब पीछे मुड़कर देखा तो ये तुम थी
तुम्हारे हाथों में मेरे मंजिल की चाभी थी,
जो मेरे मंजिल की आखिरी पड़ाव थी।

