चोर का शोर
चोर का शोर
छत पे चढ़ा था मैं नीचे खड़ी थी वो,
घर से निकले थे हम दोनों सुन के किसी और का शोर
हाँफते भागते पहुँचे हम वहाँ जहाँ से आ रहा था शोर,
देखने को भीड़ लगी थी पकड़ा गया था चोर
भाड़ में गयी दुनिया भाड़ में गया चोर,
नज़रों ने जब देखा एक दूसरे की ओर
घूर रहा था मैं उस तरफ देख रही थी वो इस ओर,
परेशानी खड़ी थी दरमियाँ अपने नाम था जिसका चोर
रात का समय था हो गया कब भोर,
सपनों के आँगन में जुड़ गया कब डोर
फँस गया मैं यहाँ थक गया लगाके जोर,
कितना भी भाग लूँ पर खींचे वो अपनी ओर
मज़हबी गुंडे चल दिए काटने डोर,
बन गए हम नदी के दो अमेल छोर
गलती कर रहे थे हम दोनों पकड़ा गया था बेचारा चोर,
हँस हँस के सब लोटपोट हो गए
पता चला जब बस नाम था उसका चोर।