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Harsh Singh

Others

4.7  

Harsh Singh

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क्या कभी हो पायेगा

क्या कभी हो पायेगा

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जो आज ना हो पाया है वो क्या कभी हो पायेगा 

इस दर्द से उभरेगा दिल या उसी में समायेगा 

मैं प्यार ना दे पाया हूँ क्या तुम मुझे अपनाओगे 

सीखेंगे हम ज़मीन पर या आसमान में सिखायेंगे

कोई ना जान पायेगा तुम मेरे कौन हो 

मैंने जो बताया तो तुम सह ना पाओगे

मैं दिल में उठा तरंग हूँ क्या तुम मुझे सुन पाओगे

खो गया सारंग तुम्हारा रंग चढ़ ना पाया है 

आप के जो पास आऊँ खुद को समझ मैं पाया हूँ

जला धूप में छाँव नहीं था तेरे संग चलने की चाह थी 

मिला दर्द सुकून बना है क्या तुम जूनून बन पाओगे 

चढ़ा इश्क़ का ख़ुमार तुम्हारा क्या तुम उत्तर पाओगे

मैं जिया जो वक़्त वही था जिसने मुझे तड़पाया है 

ख़तम हो गया ज़िस्म हमारा अब हम कब मिल पायेंगे

चले चलो न वक़्त ठहरा क्या कोई ठहर पायेगा 

आज एक हो जायेंगे जलकर फ़िज़ा में मिल जायेंगे 

क्या रूप है क्या रंग निखरा सांसें क्या अब तड़पायेंगी 

मैं जलूँगा ना तुम बुझोगी अब हम एक हो जायँगे 

जो आज तक ना हो पाया है वो क्या कभी हो पायेगा।


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