वैद्यराज
वैद्यराज


दुश्मनों को दुश्मनी ने मारा हमारा क्या दोष था
किताबों को लेखक दिलाना हमारा शब्दकोष था
सरों को काट फेंकना जवानी का जोश था
मिट्टी को खून से नहलाना हथियारों का आक्रोश था
मौका देख बदल जाना गिरगिट का भेष था
सबको मोह ले ऐसा सुन्दर केश था
लाशों का अंबार ही जिन्दा बचा शेष था
स्वावलम्बी होना कर्महीनों के मन पर ठेश था
झुकाव के बजाय कटवाया अपना शीष था
भूख प्यास भूलाकर चला आया जगत ईश था
उपद्रवी मिट्टी में घी रहा घीस था
बीमारों को ठीक करने औषधि रहा मैं पीस था
यमराज का बुलावा लाया नागपास था
इतनी जल्दी ना जाऊंगा यही सबको आस था
औषधि बना वैद्य रहा मैं सबके पास था
लाइलाज को ठीक कर बना मैं सबका खास था।