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Harsh Singh

Abstract Inspirational

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Harsh Singh

Abstract Inspirational

हर्ष एक संघर्ष

हर्ष एक संघर्ष

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सानिध्य सबका छोड़ के, माया से मोह मोड़ के

क्यों डरूं मैं किसी और से, नहीं मैं हूँ किसी और से

सांसें बस चलती रहे, कदम आगे बढ़ती रहे

मैं और कोई क्यों बनूँ, मैं खुद ही खुद को बनूँ

नदियाँ बहती ही रहे, चिता जलती ही रहे

मैं प्रेम रेत से बनूँ, मैं घृणा राख में मिलूँ

सोच किसी और की, सलाह किसी और से

मुझे कोई क्या सिखाये, हर्ष मैं संघर्ष से

ज्वाला धधकती विश्व में, मीत खोजूँ अपनत्व में

मुझे दुनिया क्या मिटाये, हर्ष मैं संघर्ष में 

चलूँ तो साथ ही चलूँ, जलूँ तो साथ ही जलूँ 

परछाईं मुझसे कह रही, तुम बढ़ो मेरे प्रभु

ना तो मैं अनाथ हूँ, ना मैं स्वामी नाथ हूँ

मुझसे कोई क्या डरे, मैं तो दीनानाथ हूँ।


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