बचपन
बचपन
दादा-दादी के हाथ को पकड़े, घूमते थे हम सारे गाँव
पिता के कंधे की करते सवारी, भाई-बहन से कभी झगड़े जाएँ।
छोटा सा बस्ता कंधे लटका, न स्कूल भी होते घर के पास
डंडे खाते कभी मुर्गा बनते, जब पूरा न होता अपना काम।
कंचा-गोली, गुल्ली-डंडा, और चलाते तीर-कमान
तितलियाँ पकड़ते वन-उपवन में, सरपट दौड़ लगाते तेज रफ्तार।
बारिश आए तो नाचते-गाते, बन जाते नाविक खास
छोटी-छोटी नाव बनाकर, उन्हे तैराते पानी में डाल।
नदी-नहर में डुबकी लगाते, बन जाते हम तैराक
लोट लगाते मिट्टी में यारों, खाते मम्मी-पापा से डॉट।
कान खीचते कुत्तों के हम, बिल्ली भी लेते हम सब पाल
बादशाहों सा अनुभव करते, करते घोडा़-भैंसें की सवारी खास।
आँख मिचौली का खेल-खेलते, बन जाते थे, पतंगबाज़
पुराने पहियों को मार-मारकर, गाड़ी बनाते उसकी खास।
कुल्फी पाते पुरानी चीजों से, खाते बुढ़ियाँ के हम सब बाल
खट्टे-मीठे चूर्ण के भी यारों, चटकारे लगाते उसकों चाट।
लंगड़ी-टांग का खेल भी खेले, बन जाते फिर शक्तिमान
लट्टू घुमाते ज़ोर लगाके, अंवारे कहलाते गाँव-देहात।
उससे कट्टी इससे दोस्ती, ग्रुप छोटे-बड़े भी तब बन जात
जिंदगी बनाने की किसे पड़ी थी, खाते-पीते,
मौज बनाते, होती, बचपन की सुंदर कितनी याद।