मौजूदगी
मौजूदगी
शाम के वो रंग बदलते बादल
कुछ पलों का करतब दिखा जाते हैं
पीला, लाल और फिर काले रंग
शायद जाने का इशारा दे जाते हैं
तुम तो इशारा देना भी भूल गए
या फिर जाने की जल्दी में थे
बादलों की तरह कल फिर आओगे
शायद इस गलतफहमी में थे
ना बातें पूरी हुई ना दुआ सलाम
बस जिंदा आज भी है अतीत कहीं
कुछ भूल गए अब कुछ खामोश हैं
वक्त स्मृतियों संग कर व्यतीत कहीं
भानु जाते हुए शशि संग तारे छोड़ जाते हैं
किंतु आज पुनः छाई है अमावस की रात
कल प्रातः पुनः रंगीला होगा आसमान
पर क्या तुम भी कह पाओगे कोई बात
फिर किसी तारे को तुम्हारी पहचान मिली
फिर निराश कोई निगाहें टिकाए बैठा है
अपने कांधों पर अकेला भार संभाले
कोई काश की आस को थामे बैठा है
बादल फिर कभी रूप कल जैसा नहीं लेगा
रूप रंग आकार सब का नया उत्थान होगा
आज चला कल की यादों को पिरोए हुए कोई
लिखने वो कल जिसमें तुम्हारा नाम नहीं होगा