अस्तित्व तलाशती जिंदगी
अस्तित्व तलाशती जिंदगी
यूं खोकर खुद को मैं,जिंदगी में भागती रही।
ऐ जिंदगी तुझे में,हर पल यूं तलाशती रही।।
सोचा तू तो है केवल अर्थ में ही तो,
तेरे अर्थ को भूल ,मैं अर्थ कमाती रही।।
जब सोचा तू मिलेगी मुझे,नाम यश के बाजार में,
तेरा नाम भुला कर मैं,यश के बाजार सजाती रही।।
जब जब सोचा,तू मिलेगी मुझे झूठ के संसार मे,
भूल तेरा अस्तितव,मैं झूठ के संग भागती रही।।
कमा कर नाम,यश ,अर्थ मै, अब भी तुझसे दूर हूँ।।
भटक अंधेरी इन राहों में,अस्तित्व तेरा तलाशती रही।।
आज रोका जब मैंने पग अपना,अंतस का जो भ्रमण किया।
दिखा वो अस्तित्व खुद में,जिसे खोजने मैं खुद से दूर जाती रही।।