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Classics
जीवन की हक़ीक़त
कुछ यूं बदल गई है,
कि हम खुद को ढूंढने में
व्यस्त हो गए हैं।
समय ही नहीं निकाल पाते
कि आपको ढूंढे,
पर आप भी क्या वक़्त के
मोहताज हो गए हैं।
कोई था/है
हक़
कायल
गुमनाम
मौजूदगी
किसी रोज़
तुम
आवाज़
हक़ीक़त
बदलाव
जुग जुग जीये उसका भैया अनन्त दुआएं दे कर आई। जुग जुग जीये उसका भैया अनन्त दुआएं दे कर आई।
तृप्ति अतुल्य दुनिया से बेखबर है ये दुनिया रिश्ता जहाँ मे ये इक अमूल्य। तृप्ति अतुल्य दुनिया से बेखबर है ये दुनिया रिश्ता जहाँ मे ये इक अमूल्य।
तुम इतनी खुबसूरत हो मुझे बस आजमाने दो ! तुम इतनी खुबसूरत हो मुझे बस आजमाने दो !
जिनकी जड़ें जितनी गहरी होती है, वो पेड़ उतनी ही घनी छाँव देती है पनाह पाती जिंदगी एक-एक कर चले ... जिनकी जड़ें जितनी गहरी होती है, वो पेड़ उतनी ही घनी छाँव देती है पनाह पाती जि...
निवेदन नहीं किया घोंसला जब बनाया बया ने । निवेदन नहीं किया घोंसला जब बनाया बया ने ।
जीवन की इस आपाधापी में फिर कैसे ढूँढते खुद का ही बचपन है। जीवन की इस आपाधापी में फिर कैसे ढूँढते खुद का ही बचपन है।
भक्ति देना निज चरण की प्रभु हरदम चुनता रहूं सत्पथ सही। भक्ति देना निज चरण की प्रभु हरदम चुनता रहूं सत्पथ सही।
ये पहचानना तेरा काम है। तू पथिक है ज़िंदगी का चलना तेरा काम है। ये पहचानना तेरा काम है। तू पथिक है ज़िंदगी का चलना तेरा काम है।
समझ में आ जाए जो बात लिख देता हूं सरल शब्दों में। समझ में आ जाए जो बात लिख देता हूं सरल शब्दों में।
जब मिलना ही था उनसे तो बिछुड़न का दर्द बनाया क्यूँ ! जब मिलना ही था उनसे तो बिछुड़न का दर्द बनाया क्यूँ !
फिर क्या भरोसा फिर मिले मुझे मधुभाषी। फिर क्या भरोसा फिर मिले मुझे मधुभाषी।
चलो सबका साथ सबका विकास हो आओ रोटी के टुकड़े का ही अनुबंध करते हैं। चलो सबका साथ सबका विकास हो आओ रोटी के टुकड़े का ही अनुबंध करते हैं।
वैराग्य, आत्मचिंतक बन नरहरिदास के अनुगामी हुए । वैराग्य, आत्मचिंतक बन नरहरिदास के अनुगामी हुए ।
कटाई, बुनाई के खेत-खलिहान कण-कण में स्थिरता का वास। कटाई, बुनाई के खेत-खलिहान कण-कण में स्थिरता का वास।
कैसे मान लूं कि सबका मालिक एक है। कैसे मान लूं कि सबका मालिक एक है।
हमको दुनिया से बेगाना किस पर करें भरोसा अपने ही हो जाएं जब बेवफा। हमको दुनिया से बेगाना किस पर करें भरोसा अपने ही हो जाएं जब बेवफा।
विवाह के लिए जब देनी होती परीक्षा तो वो मायूस हो जाती हैं। विवाह के लिए जब देनी होती परीक्षा तो वो मायूस हो जाती हैं।
पेट पीठ से मिलने ही वाला था , की रोटी दिखाई दी , और आँख बंद हो गयी । पेट पीठ से मिलने ही वाला था , की रोटी दिखाई दी , और आँख बंद हो गयी ।
उतार-चढ़ाव के रंग-रूप बदल उम्मीद नई देकर जाता। उतार-चढ़ाव के रंग-रूप बदल उम्मीद नई देकर जाता।
मेरे लिए जैसे स्वयं ईश्वर इस धरती पर उतर आया है। मेरे लिए जैसे स्वयं ईश्वर इस धरती पर उतर आया है।