गुमनाम
गुमनाम


बिखरे हुए रंगों से मैंने
एक रंग की ख़्वाहिश की थी
न रंग मिला न रंग बचा
फ़िर किस बात की नुमाइश की थी
जब डूब जाना बेहतर लगे
उस एक कश्ती पर रहने से
क्यों हम फिर भी तैर रहे
क्या बच जाएंगे बहने से
सीप मिली शीशा मिला है
कुछ नए रंग उछलते से
हम डूब रहे पर जिंदा हैं
इस ठंडी पवन में जलने से।