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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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मन ने कहा

मन ने कहा

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मन ने कहा भर गया हूंँ मैं

तुम्हें नियंत्रित करते करते,

मुझे फक्र है कि तुम मेरे थे।

लो अब मैं तुम्हारा हुआ,

आगे आगे तुम

पीछे पीछे मैं,

नया प्रेम है मेरा तुमसे

और मैं तुम्हारा होकर रह गया हूँ।

बहुत अच्छा लग रहा है

चलते, फिरते

हिलते डुलते

कहते सुनते

डूबते उतराते तुम

और तुममें

शान्त और स्थिर मैं।


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