क्या पाया सब खोया हमने.!
क्या पाया सब खोया हमने.!
ना व्यवस्थाएं सुधरी राज्य की
स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल हुआ
शिक्षा,सड़क,बिजली और पानी
विकास के हर क्षेत्र में राज्य बेहाल हुआ।
सोचा था नया राज्य बनेगा
पहाड़ियों के फिर दिन फिरेंगे
चहुँ दिशाओं में विकास के फिर
नए नए आयाम गढ़ेंगे।
उम्मीदों की उड़ान,आंखों के सपने
बस कुछ यूं चूर चूर हो गए
युवा सड़कों पे मारे मारे
अब बेरोजगार यूं फिर रहे।
विकास की बाट जोहते जोहते
उत्तराखंड भी अब कराह रहा
बाइस साल राज्य में उत्तराखंडी
१९ वी सदी की जिंदगी बिता रहा।
गांव वीरान होते रहे
लोग शहर भागते गए
पलायन की इस आंधी में पीछे
अपने सब छूटते गए।
क्या पाया हमने
सब खोया इस राज्य निर्माण में
लाठी डंडे, गोलियां खाई
पहाड़ी संस्कृति के सम्मान में।
ना अस्पताल नए बने
ना सड़कें दूरस्थ हो पाई
जल, जंगल और जमीन भी
बाहरियों ने बेतरतीब हथियाई।
डॉक्टर, शिक्षक, कर्मचारियों का
पहाड़ से मोह भंग हो गया
परेशानियों के अंबार लगाके
खुद पहाड़ी जड़ हो गया।
सवाल भी अनेक हैं
जवाबों में भ्रष्टाचार है
क्या नेता क्या अधिकारी
इस लूटतंत्र में सब भागीदार हैं।
सरकारों से सवाल है
आखिर कब तक हम ठगे जायेंगे.?
सत्ता के खातिर ये तार
कब तक यूं उलझते जायेंगे.?
कब ऊंचे आसनों में बैठे
हुक्मरानों के कानों जूं रेंगेगी
विकास की फाइलें भी कब तक
यूं ही धूल फांकती फिरेंगी।
कभी तो उम्मीदों का सूरज
अपना असर दिखायेगा
मातृशक्ति और युवाओं के बलिदान का
अहसास उन्हें कराएगा।