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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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आदमी

आदमी

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ज़ब तक है जमाने में होशियार आदमी.

तब तक है नहीं कोई तलबगार आदमी.


चालाक है मगर तू अब ये भूल गया है.

हर तरफ है तुम सा ही गरजदार आदमी.


चल रहा है चाल वो स्वारथ लिए हुए

बाकी को समझता है बेकार आदमी.


कुछ बात तो है तेरी आदत में ऐ हुजूर

हर तरफ खड़ा है मददगार आदमी


चारो तरफ घूमकर तो देखिये 'सुओम' 

कुछ गद्दार है तो कुछ शरमदार आदमी.


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