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स्त्री

स्त्री

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आज जब मैंने प्रत्येक क्षेत्र में

फहरायी अपनी विजय पताका,

फिर भी देकर दोयम दर्जा मुझे

क्यों पुरुषों से कमतर आंका।


पुरुषों के वर्चस्व वाले हर क्षेत्र में

निडर स्त्रियों ने किया प्रवेश,

अपने निपुणता का दिया परिचय

गर्वित हुआ हमारा भारत देश।


मैं अरुणिमा सिन्हा पर्वतारोहण में

हिमालय की चोटी पर झंडा फहराई,

अपने पैरों से लाचार होने पर भी

डिगी ना लक्ष्य से, मुंह की ना खाई।


आई जितनी भी कठिन परीक्षा

हँसकर, डटकर किया सामना,

छूना है हिमालय का उच्च शिखर

लेकर मन में यह अडिग भावना।


मैं गुंजन सक्सेना 'करगिल गर्ल'

के नाम से विभूषित की गई,

करगिल युद्ध की गोलियों के बीच

उड़ान भर सेनाओं की जान बचाई।


होती रही भीषण गोलियों की बरसातें

पर मिटा ना पाई लक्ष्य मन में अंकित,

निडर मानवी उड़ानें भरती रही

हुई ना वह किंचित भी भयभीत।


मैं आरती सिंह वशिष्ठ, शहीद की पत्नी

अपने लक्ष्य से फिर भी ना डिगी,

एक वीरांगना की भांति दिया सेल्यूट

शहीद को, गर्वित आंखें न भीगी।


लिए मन में अथाह वेदना का ज्वार

युद्ध में जाने के लिए हुई तत्पर,

आंखों में रोककर आंसुओं का सैलाब

दिया परिचय साहस उड़ान भर।


मैं 'इंदिरा नूई' बदली स्त्रियों की परिभाषा

माता बनकर लुटाई असीम ममता,

पत्नी बन कर पति का दिया साथ

आगे बढ़ी छोड़ पीछे सारी विवशता।


मैंने गीता, बबीता फोगट बनकर

पुरुषों के साथ किया मल्लयुद्ध,

उठाता रहा समाज उंगली मुझ पर

हुई विजयी मन में था निश्चय शुद्ध।


मैंने 'मेरी काॅम' का रूप धरकर

विश्व में विजय पताका फहराया,

पुरुषों के उस क्षेत्र में प्रवेश किया

जहां जाने से मुझे समाज ने डराया।


माता मैं हूं, संपूर्ण सृष्टि की रचयिता

करो ना मेरे मातृत्व पर संदेह,

पोषित करती हूं एक शिशु को

अपने ही रक्त से जो देता मेरा देह।


सूनी ना होने दी भाई की कलाई

जब भी आया त्यौहार रक्षाबंधन,

बनके बिटिया खुशी के फूल खिलाए

सुशोभित करती रही पिता का आंगन।


पत्नी बन में समर्पित हुई पति पर

चली संग कदम से कदम मिलाकर,

भर दी खुशियां सब के जीवन में

अपने अंतस में अथाह व्यथा छुपाकर।


फिर भी क्यों ना पा सकी मैं सम्मान

जिस पर मुझे है संपूर्ण अधिकार,

सोचे मानव समाज एक बार पुनः

छोड़ के भेदभाव का मानसिक विकार।


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