अंजान सफ़र एक मुलाकात
अंजान सफ़र एक मुलाकात
किसी अंधेरे कोने में जलते दीये से मुलाकात
हो गयी
बरसों से छिपी थी दिल में आज वो बात हो गई
वो मुझे अंधेरे में अकेले आते देख मुस्कुराया
मैंने भी कदम उसकी रौशनी की तरफ बढ़ाया
न जानता थी मैं उसे न पहले से वो मुझे
पर आँखों ही आँखों में मुलाकात हो गयी
पूछा मैने उससे अकेले में जलने का सबब
उसने पलट कर पूछा भीड़ में अकेले बढ़ने
का सबब
न वो कुछ बोला न कुछ मैं बोल सकी
गहरी हम दोनों की वो रात हो गयी
क्यों अकेले अंधेरे में जल रहे हो तुम
क्यों अंधेरे में मेरी तरफ बढ़ रहे हो तुम
कब तक रौशनी दोगे बुझ जाओगे तुम
इस तरह चलते चलते दुनिया से चले
जाओगे तुम
ये तुम्हारी लौ बस कुछ समय ही टिमटिमायेगी
ये ज़िन्दगी भी तुम्हें एक दिन छोड़ जाएगी
जिनको रास्ता दिखा रहे हो वो तुम्हें फूंक
जाएंगे
कौन हैं जो तुम्हारा साथ निभायेंगे
तुम ज़बरदस्ती ज़िद पर अड़े हो
तुम क्यों सबकुछ ठीक करने के पीछे पड़े हो
सुबह होने दो तुम्हारा ये घमंड टूट जाएगा
तुम्हारा भी तो सबसे एक दिन साथ छूट जाएगा
तुमसे बहस करना मेरी नादानी है
दिया फिर पलट कर बोला भीगे से सुर में
तुम्हारी मेरी एक सी ही कहानी है
मैं अंधेरा मिटाते मिटाते इस अंधेरे में खो
जाऊँगा
तुम निभाते निभाते रास्ते में सो जाओगी
कभी शायद किसी को अंधेरे में ठोकर लगने
पर याद आऊंगा
तुम भी किसी की आँख से अकेले में बह
जाओगी
लोग कब मुझे याद रखते है कभी सुबह
होने पर
लोग से तुम भी क्यों उम्मीद लगाओगी
चलो मैं भी जी लूँ सुबह की रौशनी होने तक
चलो तुम भी जी लो ज़िन्दगी की शाम होने तक
आज एक दीये से मुलाकात हो गई
कुछ ज़िन्दगी की अपनी सी बात हो गयी....