रहती थी मुझमे एक लड़की
रहती थी मुझमे एक लड़की
रहती थी मुझमे कभी एक लड़की,
भोली सी,मासूम ज़िद्दी सी लड़की,
ज़रा सी दीवानी ज़रा बावली सी,
जहाँ के रिवाज़ों से कुछ बेख़बर सी।
रहती थी मुझमें कभी एक लड़की
हवाओं सी चंचल बहती नदी सी।
फूलों सी कोमल खिलती कली सी
हिरनी के जैसे सहमी,डरी सी
रहती थी मुझमें कभी एक लड़की
सुबह की उजली उजली किरन सी
ख़ुशबू से भरपूर महके चमन सी
निर्मल सी निश्छल सी अल्हड़ मलंग सी
रहती थी मुझमें कभी एक लड़की
न जाने वो लड़की कहाँ खो गयी है
जहाँ के झमेलों में गुम हो गयी है
नज़र क्यों न आए वो सूरत भली सी
रहती थी मुझमें कल तक जो लड़की।