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Niharika Singh (अद्विका)

Abstract

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Niharika Singh (अद्विका)

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बहुत ज़िंदा रह चुकी हूँ मैं

बहुत ज़िंदा रह चुकी हूँ मैं

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एक कोलाहल भरी

जिंदगी जी चुकी हूँ मैं,

न जाने कितने ज़ख्मों को,

पी चुकी हूँ मैं।


अब कोई दर्द तकलीफ

नहीं देता मुझे,

कितने दरिया इन आँखों में

डुबो चुकी हूँ मैं।


कभी कुछ मांग लेते तुम

तो अच्छा लगता मुझे भी,

पर सबकुछ सिर्फ मेरे,सिर्फ मेरे लिए,

तुम्हारी इस खुशी में भी रह चुकी हूँ मैं।


किसी दिन आ कर जान लेना,

मेरे हँसते रहने का सबब तुम भी,

दिल मे उबलते लावा को

रोके हूँ किसी तरह,

वरना तो कब का,

पिघलते मोम सी बह चुकी हूँ मैं।


यदि वक़्त ने मुझे

वक़्त दिया किसी रोज़,

इसी ज़िन्दगी में,

एक बार बस गले लगा कर

कहना है तुम्हें,

जाने भी दो अब,

बहुत ज़िंदा रह चुकी हूँ मैं।


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