ज़िन्दगी कल हो ना हों...
ज़िन्दगी कल हो ना हों...
कुछ नहीं है जिंदगी,
एक वक़्त का गुज़ार है,
कुछ यहाँ पुख़्ता नहीं,
तू बेसबब बेज़ार है।
वक़्त चलता जा रहा है,
जो कयामत तक चलेगा,
जी सके तो जिंदगी जी,
दिन ज़िन्दगी के चार है।
कौन अपना,कौन दूजा,
ये वहम क्यूँ पालना,
दिल कहे सच और ,
कुछ भी सोचना बेकार है ।
तय करो के जिंदगी,
कैसी गुज़ारी जायेगी,
सच यही के जिंदगी
ना जीत है,ना हार है ।
एक तेरा होना ही सच है,
वक़्त भी है हाथ में,,
गर हकीकत का होश हो, द
तो ज़िन्दगी त्यौहार है।
यूँ यहाँ हर शख़्स,
अपनी मौत से है बेखबर,
जिंदगी हो बेखबर फिर,
जिंदगी बेकार है।
ज़िस्म पे ना जख़्म है,
ना आग भीतर है कहीं,
किसलिए ये बेकली है,
किसलिए लाचार है।
होश होगा तो हकीकत भी,
समझ़ आ जायेगी,
बेखुदी में जिंदगी एक,
ख़्वाब का इजहार है।
तू यहां पैदा हुआ बेशक,
मगर तू जायेगा,
ये हकीकत है जिसे तू,
कर रह इंकार है।
एक अकेला ज़िस्म लेकर,
आदमी जन्मा करे,
जानता सच सब मगर,
तू भूलता हरबार है ।
कुछ नहीं तेरा यहां,
तेरे सिवा संसार में,
सच यही है,एक दिन तो,
छूटता धरबार है।
जिंदगी का क्या भरोसा,
जिंदगी कल हो ना हो,
जिंदगी है आज,अब है,
जिंदगी एक बार है।
