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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Tragedy

"दीवारें"

"दीवारें"

1 min
414


सूना-सूना सा घर है, सूनी-सूनी सी है, दीवारें

ढूंढ रही है, खोए हुए, अपनों को ये चारदीवारें

छद्म परिवेश ने मिटाये, दीवारों के चांद-सितारे

अब न लेते, कोई घर की चारदीवारों के सहारे

सब लोग मशगूल है, बस इस मोबाइल में प्यारे

दीवारें बतियाती, कहां खो गये, अंधेरे में मेरे साये

दीवारों पर नहीं दिखती अब कोई भी लकीर,

सब लोग आजकल हो गए, घर में ही फकीर,

दीवारें से मिटे, अपनत्व बतानेवाले धब्बे सारे

सूना-सूना सा घर है, सूनी-सूनी सी है, दीवारें

चुप है, आज सूनी दीवारों के वो सारे जयकारे

जो लगाते थे, बाल गोपाल परिवार के हमारे

याद आते ही पुरानी यादें, हृदय में चुभते कांटे

हम कितने खेलते थे, पहले दीवारों के सहारे

आज घर में, चुपचाप अकेले कहरा रही, दीवारें

उन्हें देखकर यूं ऐसा लगता, जैसे रो देगी, दीवारें

पुरानी टूटी दीवारे देख, दिल मे चल रही, तलवारें

आओ दीवारों पर फिर लिखे, हम प्यार भरे, नारे

अपनों का साथ पा, फिर से खिलेंगी मुरझाई, दीवारें

जरा सा प्यार से आप पुराने घर की दीवारें निहारे

सच कह रहा हूँ, वो आपको देगी पिता तुल्य सहारे



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