"जख्म बना हथियार"
"जख्म बना हथियार"
जब खुद के ही साये ने जख्म दिये, हजार
अब हम किसको कहे, अपने भले विचार
छाया हुआ, प्रकाश में भी आज, अंधकार
क्या करे, अपना ही भार लगने लगा, भार
अपनी जिंदगी खत्म हुए, सारे सूकुं इतवार
गहन अँधेरे में ढूंढ रहा हूं, में अपना विहार
खास की मन को मिल जाये, शांति उपहार
पर खत्म नहीं हो रहा है, साखी का इंतजार
चहुँ ओर ही मिले है, मुझे बस मतलबी यार
लोग बाहर से मीठे, भीतर रखते, बहुत खार
मौका मिलते ये लोग पीठ में घोंपते तलवार
मुझे तो खुद के ही साये ने जख्म दिये, हजार
आईने भी शर्मिंदा, कैसे-कैसे हो गये, चित्रकार
जो अपना नही, दूसरों का बना रहे, चित्र हजार
पर साखी दुनिया मे उसने ही किये, चमत्कार
जिसने जख्मों को बना दिया फौलादी, हथियार
