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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

"चाय"

"चाय"

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"चाय"जो व्यक्ति यहां पर पीते है, चाय

वो पाते है, बहुत अनुभूति सुखाय

आलस्य चाय आगे करे, बाय-बाय

यह कलियुग अमृत है, कहलाय


वो मनुष्य देता है, बहुत अच्छी राय

जो साथ बैठ पीता है, एक कप चाय

भाईचारा बढ़ाने में यह, बहुत सहाय

इस चाय में बड़े अद्भुत गुण समाय


हर ओर से निराश लोग, सुने राय

लगा ले, आप यहां पर ठेला चाय

चाय तू बनी, बेरोजगारों की माय

चाय बढ़ा रही है, लोगों की आय


जो व्यक्ति रोज ही पीते है, चाय

वह जानते है, चाय है, बस चाय

द्वेषता मिटाने का एक ही उपाय

पिओ और पिलाओ सबको चाय


वही मनुष्य करता है, हाय-हाय

जो है, कृपण नही पिलाता चाय

चाय पिलाने से मिले, पुण्य भाय

इसमें न है, बिल्कुल कोई दो राय


पिये-पिलाये एक-दूजे को आप चाय

बिगड़ी बात को भी बना देती है, चाय

शत्रुओं को भी मित्र बना देती है, चाय

परायों मे भी अपनापन जगाती है, चाय



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