कन्यादान
कन्यादान
लो किया अभी से जुदा मुझे
जैसे काया से प्राण किया
क्या जिया नहीं तड़पी बाबा
जब मेरा कन्यादान किया
जिस गोद में बचपन खेला था
वह गोद है तर अश्रु जल से
जो हाथ थे झूलों का मेला
है संशय मय भावी कल से
क्या भार नहीं सह सके मेरी
पल भर में अलग पहचान किया
क्या जिया नहीं तड़पी बाबा
जब मेरा कन्यादान किया
क्या जुदा ही होने को बेटी
बाबुल के घर में पलती है?
एक दिन ये पराया घर होगा
बेटी के मन को खलती है
बाबुल के बगिया की गुंचा
कितने नाजों से बड़ा किया
क्या जिया नहीं तड़पी बाबा
जब मेरा कन्यादान किया
कितने वचनों में बांध मुझे
कर्तव्य का उनको नाम मिला
मुझसे ही तुम्हारी गरिमा थी
फिर क्यों ऐसा इनाम मिला
बिन तेरे हर एक पल होगा
जैसे कि ज्योति बिन अंखियां
क्या जिया नहीं तड़पी बाबा
जब मेरा कन्यादान किया
मैं खुशबू हूं तुम पुष्प मेरे
तुम बिन कैसे मैं महकूंगी
तुम मुक्त गगन मैं खग निर्भय
कैसे तुम बिन मैं चहकूंगी
कई जन्म से तुमसे नाता है
तू मेरा जनक मैं तेरी सिया
क्या जिया नहीं तड़पी बाबा
जब मेरा कन्यादान किया