सुनो प्रिय
सुनो प्रिय
सुनो प्रिय मैं सुन सकती हूं
मौन अधर की भाषा
नयनों ने भी पढ़ा उस दिन
व्याकुल मन की अभिलाषा
यह प्रेम कहां छुप पाता है
मुखर रहो या मौन
बस प्रियतम ही प्यारा जग में
हर रिश्ता लगता गौण
शब्दों के ताने-बाने हर बात
कहां कह पाते हैं?
कुछ छुपे हुए अनकहे भाव
वो नैन तेरे बतलाते हैं?
कभी-कभी मन की कुछ बातें
मन में रहना ही अच्छा
जब वाणी को न शब्द मिले
आंखों से कहना ही अच्छा
मैंने भी कुछ स्वप्न बुने
उम्मीदों के संसार में
आंखों में यूं ही कैद किया
ना बहे अश्रु की धार में
उन सपनों की दुनिया में
अपना किरदार निभा जाना
आँख बिछाए बैठी हूं
तुम दस्तक देने आ जाना