इल्तिज़ा
इल्तिज़ा
तेरी मुहब्बत की कब तक इल्तिज़ा मैं करूँ
तू ही बता ऐ सनम, कितनी वफ़ा मैं करूँ?
तेरी बेरुखी को हमने, सबसे छुपाए रखा
अब इससे ज्यादा क्या, ख़ुद पे जफा मैं करूं?
बेवफा हो गए तो, मुझसे ऐसी हसरत है
ख़ुद से शिकवा करूं, तुम पे भरोसा मैं करूं
करके रुसवा ज़माने भर में मुझे
चाहते हो कि, अब हया मैं करूं
जानते हैं, ना तुम मनाओगे
रूठने की अगर अदा मैं करूं
ज़िंदगी अब तलक जो देखी है
तुझसे क्यों बेकार फलसफा मैं करूं