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Sarita Dikshit

Romance Tragedy

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Sarita Dikshit

Romance Tragedy

कहां से लाऊं मैं

कहां से लाऊं मैं

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जो खोई है एक मुद्दत से 

जज्बातों के शोर में

खामोश लबों पर गूंज रही

मुस्कान कहाँ से मैं लाऊं 


ज़ख्मों को ज़ख़्मी करते हो

फिर अश्कों से सहलाते हो

इश्क की ऐसी फितरत पर 

गुमान कहाँ से मैं लाऊं  


लो तोड़ दिया फिर से मैंने 

अपने एहसास के शीशे को 

अब बचा नहीं मुझमें कुछ भी

पहचान कहां से मैं लाऊं 


कोई आस रखो ना अब मुझसे 

खुद से ही मुझे उम्मीद नहीं

गर मुझ पे हुआ तेरा जो करम

एहसान कहां से मैं लाऊं


क्या मुझमें है, क्या तुझमें है

इस मसले में अब क्या रक्खा

खुद से ही खुद का खेल है सब

इलज़ाम कहां से मैं लाऊं  


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