ये उदासी
ये उदासी
ये उदासी प्राण लेकर जा रही
हो सके तो तुम चली आओ प्रिये।
भावनाएँ राधिका सी,
हो गयीं हैं बावरी।
कृष्ण गोरे हो गये हैं,
गोपियाँ सब साँवरी।
घोलती थी मधु कभी जो कान में
बाँसुरी वह तान लेकर जा रही
हो सके तो तुम चली आओ प्रिये।
सोच के हर दायरे में
उलझनों के तार हैं।
घोंटने को जो गला अब,
हर घड़ी तैयार हैं।
मैं विकल हूँ और दुनिया मस्त है
कामना सम्मान लेकर जा रही
हो सके तो तुम चली आओ प्रिये।
पूछते कुछ लोग मुझसे,
क्या बताऊँ मैं भला?
दिन दहाड़े आज उसने
और कब तुमने छला।
और भी कहनी थी तुमसे अनकही
साँस पर संज्ञान लेकर जा रही
हो सके तो तुम चली आओ प्रिये।

