स्नेह
स्नेह
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तुम्हारी आँखें, तुम्हारी बातें, तुम्हारी यादों का सिलसिला है
मेरी निगाहों में आज भी कुछ अधूरे ख़्वाबों का सिलसिला है
हर इक वरक़ पे तेरा ही चेहरा , तेरी कहानी हैं लफ़्ज़ सारे
लगा के रक्खा है जिनको दिल से , ये उन किताबों का सिलसिला है
जगा रही है तुम्हारी फ़ुर्कत ,जो नींद आये तो ख़्वाब देखूँ
गुज़र रही हैं जो कशमकश में, ये ऐसी रातों का सिलसिला है
तेरे ख़यालों की कैफ़ियत से, महक रही है ये ज़िन्दगानी
छुपा रखे थे जो डायरी में, उन्हीं गुलाबों का सिलसिला है
'ज़िया' जो लम्हे गुज़र चुके थे, वो फिर से क्यूँ दे रहे हैं दस्तक
उदास शामें रुला रही हैं, छलकती आँखों का सिलसिला है।