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Anuja Manu

Romance

4  

Anuja Manu

Romance

स्नेह का उपहास

स्नेह का उपहास

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तुम चुप हो तो मै भी मौन हूं

फिर मत कहना कि मै कौन हूं

कभी माना था खुद की परछाई मुझे

और आज पूछते हो कि मै कौन हूं।

मै स्नेह का सागर हूं,गर तुम साथ देते

बिन बोले ही अपना मान लेते,

शब्दों के जाल में न उलझाते कभी

दिल के गहराइयों में गोते लगाते कभी

अनुराग से मुझे कभी देखा तो होता

विराग के परदे को हटाया तो होता

तुम्हारे रुक्ष से जीवन में वर्षा की नमी लाती

क्या खुशियों में तुम्हारे कभी कमी लाती?

तुम्हारे बेरुखियों से मै अब तंग हू

इसलिए वक़्त से मौन हूं

और तुम अब पूछते हो मै कौन हूं?       


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