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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Romance

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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Romance

मंज़र

मंज़र

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बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

वो पहला ही मिलन, बोसा वो मंज़र याद है तुमको ? 

किनारे बैठना क्या वो समंदर याद है तुमको ?


शब-ओ-रोज़ ये मिरी आवाज़, बेताबी वो सुनने की

यूँ तुम हर वक़्त रहते थे, मयस्सर याद है तुमको ?


नज़र तेरी उठे मेरी सहर होती थी सोने सी

अँधेरी रात करते थे मुनव्वर याद है तुमको ?


वो सर्दी मौसम-ए-सर्मा की औ वो जिस्म की गर्मी

मिलन का वो जो था, माह-ए-दिसम्बर याद है तुमको ?


दी तुम्हें अहमियत, ख़ुद को भुला कर तेरी 'ज़ोया' ने,

किया सब मैंने अपना भी, न्योछावर याद है तुमको ?


उर्दू शब्दों के अर्थ-- बोसा=चुंबन / शब-ओ-रोज़= रात दिन /

मयस्सर=उपलब्ध / मुनव्वर=रौशन / मौसम-ए-सर्मा = winter 

10th September 2021 / Poem 37


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