मंज़र
मंज़र
बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
वो पहला ही मिलन, बोसा वो मंज़र याद है तुमको ?
किनारे बैठना क्या वो समंदर याद है तुमको ?
शब-ओ-रोज़ ये मिरी आवाज़, बेताबी वो सुनने की
यूँ तुम हर वक़्त रहते थे, मयस्सर याद है तुमको ?
नज़र तेरी उठे मेरी सहर होती थी सोने सी
अँधेरी रात करते थे मुनव्वर याद है तुमको ?
वो सर्दी मौसम-ए-सर्मा की औ वो जिस्म की गर्मी
मिलन का वो जो था, माह-ए-दिसम्बर याद है तुमको ?
दी तुम्हें अहमियत, ख़ुद को भुला कर तेरी 'ज़ोया' ने,
किया सब मैंने अपना भी, न्योछावर याद है तुमको ?
उर्दू शब्दों के अर्थ-- बोसा=चुंबन / शब-ओ-रोज़= रात दिन /
मयस्सर=उपलब्ध / मुनव्वर=रौशन / मौसम-ए-सर्मा = winter
10th September 2021 / Poem 37

