हमारे शहर में अज़नबी से चेहरे ह
हमारे शहर में अज़नबी से चेहरे ह
उनके दीदार को हर दम तड़प ता रहता हूँ। घुलता रहता हूँ मैं, अक्सर सुलगता रहता हूँ ।।
मेरी उम्मीद पर , पानी न फेर दे कोई, खुदाया प्यार को हरदम तरसता रहता हूँ। हमारे शहर में , कुछ अज़नबी से चेहरे हैं। पता नहीं है ,वो कब से ,यहां पे ठहरे हैं.....
मुश्किल है दीद, दिन में निकलते नहीं हैं वो। राहों में कभी अकेले चलते नहीं हैं वो।। निकलें जो शाम-ओ-शहर ,बड़े सख्त उन पे पहरे हैं पता नहीं है ,वो कबसे ,यहां पे ठहरे हैं...हमारे शहर में , कुछ अज़नबी से चेहरे हैं।
नजरों ने उनको जब से,यूं देखा है कसम से।दिलमें खिंची एक प्यारकी रेखा है कसम से।इनकी हर अदा में नागिन के जैसे लहरे हैं पता नहीं है ,वो कबसे ,यहां पे ठहरे हैं..... हमारे शहर में , कुछ अज़नबी से चेहरे हैं।
उनसा जहां में और कोई हो तो बताएं। कायल हैं उनकी सादगी पर, किसको बताएं।देखा जबसे उनको ,दिलपे घाव बड़े गहरे हैं पता नहीं है ,वो कबसे ,यहां पे ठहरे हैं..... हमारे शहर में , कुछ अज़नबी से चेहरे हैं।
'उल्लास' तो पत्थर की बुत ,बनके रह गया। नज़रें मिली इक बार तो,लिल्लाह कह गया । तमाम लोग , उनकी तश्नगी में ठहरे हैं। पता नहीं है ,वो कबसे ,यहां पे ठहरे हैं.... हमारे शहर में , कुछ अज़नबी से चेहरे हैं।