जब से आया हूँ तेरे जहां में, सिर्फ आंसू ही मैं पी रहा हूँ ।
जब से आया हूँ तेरे जहां में, सिर्फ आंसू ही मैं पी रहा हूँ ।
जब से आया हूँ तेरे जहां में, सिर्फ आंसू ही मैं पी रहा हूँ ।
कभी देखा नहीं मुस्कुरा कर , जाने कैसे मैं फिर जी रहा हूँ ।।
जी रहा हूँ , मैं जी तो रहा हूँ,जी रहा हूँ मैं बस, जी रहा हूँ।
हाल दिल का सुनाऊँ तो किसको, ग़मज़दा ओठ मैं सी रहा हूँ.
आरजू थी मेरी इस जहां में, प्यार भर दूं यहाँ से वहाँ मैं।
फूल की सी हंसी मैं हसूंगा, सारे जग को भी दूंगा हँसा मैं ।
आज कांटो में उलझा हुआ हूँ ,और नफरत पे मैं रो रहा हूँ...
>
मैं मुसीबत का मारा हुआ हूँ,बोझ, लगती है अब जिंदगानी!
सीधा बचपन से आया बुढापा, कभी मुझमें ना आई जवानी !!
मुझे लगता जहर सब जहां का बस अकेला ही मैं पी रहा हूँ...
ऐसा लम्हा नहीं ज़िंदगी में, जबकि तुमको पुकारा नहीं है।
आखिरी है दुआ मौत दे-दे, मुझको जीना गंवारा नहीं है ।।
आश उल्लास ने छोड़ दी है, जिंदगी मौत की जी रहा हूं...