रोटी की बात, सिल्लू के साथ
रोटी की बात, सिल्लू के साथ
रोटी लगी है आज शाम को, सिल्लू को समझाने को।चले गए थे मम्मी के संग, तुम आज चाऊमीन खाने को।।
अब रात के नौ बज गए, क्यों पास न हमें बुलाते हो।क्या हमसे दिल ऊब गया? चाऊमीन चाव से खाते हो।।
हाथ धोए थे क्या तुमने ? खाने से पहले, बीच बाजार । इसीलिए बीमार होते हैं, लोग यहां पर बार-बार।।
एक बार चाऊमीन खाकर, हँसते हो खिलखिलाते हो। कभी थैंक-यू बोला हमको ? तुम प्रतिदिन रोटी खाते हो।।
सोने से पहले सिल्लू तुम, खुद को समझा लेना । गरमा- गरम मम्मी के हाथ की, एक रोटी तो खा लेना।।
नहीं तो, अगर मैं नाराज हो गईं, कभी नहीं समझाऊंगी। वीडियो गेम खेलते हो कितना, सब पापाजी को बताऊंगी।।
सुन लो सिल्लू, रोटी हूँ मैं , ज्ञानी जन साफ बताते हैं। 'दो जून' की रोटी के लिए, लोग कितने धक्के खाते हैं।।
पूछ रहे थे न, पापा से तुम कल, रोटी कभी बोलती है क्या? बिना पैर के गोल- गोल सी, रोटी कभी डोलती है क्या?
सुनो, कवि की कलम में आकर, रोटी साफ़ बोल सकती है ।पतली हो या मोटी रोटी, दिल के भाव खोल सकती है।।