प्यार
प्यार
बहुत दिनों से पढ़ रही गजलों ने
मेरे दिल में जोश जगाया
सोचा कुछ लिख डालूँ
कुछ ऐसा मन बनाया ।
लिखूँ किस पर यह समझ न आया।
प्यार व इकरार तो हुआ नहीं
माँ पापा ने ढूँढ़ा ही सरताज बनाया।
बाद की महोब्बत तो केवल अपनी
बताना मन को बिलकुल न भाया।
सोचा तकरार को ही कह दूँ
वो भी एक तरफा सो मजा न आया।
न रूठना न मनाना
बेकार में दिल को ज्यादा चलाया।
जो देखा फिल्मों में
ऐसा कुछ नजर न आया
कहा दिल ने छड मना ऐ दिल दिया गल्लां
उठ जा जाके रोटिया पका
कदे ख्याला च खो के नवेख्या
सवेर तों शाम कि बनाना ऐ सोचया
बस हुण हौर कोशिश नहीं दोस्तो
अगली रोटी बणान दा
वेला जो हो गया।
पर इक गल्ल सच्ची है
मेरे लई प्यार यही है
मेरा परिवार
सही न ?
क्या यह प्यार नहीं ?
क्या यही प्यार है ?
ख्याल अपना अपना
पसंद अपनी अपनी
जताना नहीं आता तो क्या
प्यार तो आता है।