STORYMIRROR

भाऊराव महंत

Romance

3  

भाऊराव महंत

Romance

याद तुम्हारी आती है प्रिय

याद तुम्हारी आती है प्रिय

1 min
367

याद तुम्हारी आती है प्रिय 

जब–जब मेरे मन में।

बहुत दुखी हो जाता हूँ मैं 

तब–तब इस जीवन में।


क्षिति पर दिनकर के उद्भव से 

मंदिर का सुन मन्त्र प्रणव से 

होता  पंछी के  कलरव से

प्रातः ख़लल शयन में।


विरह-व्यथा देकर तुम निर्मम 

नैन कर  गए हो  मेरे नम 

व्याकुल हो कस्तूरी-मृग सम 

ढूँढू तुम्हें विजन में।


श्रम से मुझको भले थकन हो 

मिलनातुर यदि स्वयं सजन हो

मिलूँ वहाँ मैं जहाँ मिलन हो 

धरती और गगन में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance