याद तुम्हारी आती है प्रिय
याद तुम्हारी आती है प्रिय
याद तुम्हारी आती है प्रिय
जब–जब मेरे मन में।
बहुत दुखी हो जाता हूँ मैं
तब–तब इस जीवन में।
क्षिति पर दिनकर के उद्भव से
मंदिर का सुन मन्त्र प्रणव से
होता पंछी के कलरव से
प्रातः ख़लल शयन में।
विरह-व्यथा देकर तुम निर्मम
नैन कर गए हो मेरे नम
व्याकुल हो कस्तूरी-मृग सम
ढूँढू तुम्हें विजन में।
श्रम से मुझको भले थकन हो
मिलनातुर यदि स्वयं सजन हो
मिलूँ वहाँ मैं जहाँ मिलन हो
धरती और गगन में।