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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance

सुमुखि सवैया २

सुमुखि सवैया २

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न प्रेम की पीर बिसार सके मन, प्रेम अधीर करे मन को ।

न यौवन ही समझे कुछ भी न सके समझा कुछ यौवन को ।

चले जब शीतल वायु जले, अति कोमल पुष्प चुभे तन को ।

टिके न कहीं भटके मन ज्यों मृग त्याग चले अपने वन को ।।



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