सुमुखि सवैया २
सुमुखि सवैया २
न प्रेम की पीर बिसार सके मन, प्रेम अधीर करे मन को ।
न यौवन ही समझे कुछ भी न सके समझा कुछ यौवन को ।
चले जब शीतल वायु जले, अति कोमल पुष्प चुभे तन को ।
टिके न कहीं भटके मन ज्यों मृग त्याग चले अपने वन को ।।

