चमचे
चमचे
चमचों की क्या बात करूं
उनकी महिमा है अपरम्पार
जिनकी बुद्धि का पार नहीं
जुगाड़ों में भी जुगत अपार
जो भी हो पात्र भरा सम्मुख
उनको खाली कर जाते हैं
जब काम निकल जाए इनका
खाली भांडा ये बजाते हैं
अपने मतलब के लिए तो ये
औरों की भी मिट्टी खोदें
खिलने को मनचाही हसरत
गैरों के लिए कांटे बो दें
ये चमचे प्रायः दफ्तर के
हर शाखा में मिल जाते हैं
जिन्हें देख हर बॉस की
आशाओं के पर लहराते हैं
पर बॉस को भी मालूम नहीं
करते कैसी-कैसी ये कपट
बॉस के संरक्षण में रहकर
बॉस को ही लगाए चपत
ये ऐसे कौम से आते हैं
अदृश्य आरक्षण जो पाएं
बॉस को भी अदले-बदले
गर नया ये मौका पा जाएं
ये शिकार उनका करते
जो लाभ इन्हें पहुंचाते हैं
तलवे भी उनकी चाटे ये
जो काम में इनके आते हैं
मक्खनबाजी का गुण लेकर
ऑफिस की शान बढ़ाते हैं
जो इस गुण से नावाकिफ हो
एड़ी घिसते रह जाते हैं
ना इनका सच्चा मित्र कोई
ना ही कोई पक्का दुश्मन
ये अपने तुच्छ मुनाफे पर
समर्पित कर देते तन मन,
इन्हीं योग्यता के बल पर
ये ऊंचा पद भी पा जाते
जो कर्म को धर्म समझते हैं
उनको ये सीख सिखा जाते
नहीं निपुणता आवश्यक
ऊंचा मकाम पाने के लिए
बॉस का चमचा बन जाओ
किस्मत चमकाने के लिए
तेल लगाने का गुर सीखो
इससे बड़ा ना कोई हुनर
तरक्की यूं ही पा जाओगे
नारी हो, चाहे हो नर