STORYMIRROR

aazam nayyar

Abstract Romance

4  

aazam nayyar

Abstract Romance

हौसला

हौसला

1 min
246

लड़ने का दुश्मनों से हौसला है 

हर राहें साथ देता बस ख़ुदा है 


आते है पेश गैरों की तरह ही 

मुहब्बत तो अपनों की बेवफ़ा है 


भुला है वो खू का रिश्ता मुहब्बत 

की पैसों के लिए अपना लड़ा है


किसे मैं अपना हाले दिल सुनाऊँ 

नहीं कोई भी अपना आशना है 


कभी दिल की अपने कहते नहीं कुछ 

निगाहें भर के वो बस देखता है 


मुहब्बत का जिसे हर पल दिया गुल  

मुहब्बत का न रक्खा राब्ता है 


वो आया पेश तल्ख़े ज़ुबां से 

नहीं वो प्यार से आज़म मिला है 

आज़म नैय्यर 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract