"थोड़ा-थोड़ा कार्य"
"थोड़ा-थोड़ा कार्य"
थोड़ा-थोड़ा कार्य करो, आप तो बस रोज
कार्य का कभी नहीं पड़ेगा, आपके बोझ
जिसकी नित कार्य करने की होती सोच
वो तो प्रतिदिन ही करता, एक नई खोज
जिसने कर्मागनी की भीतर जलाई जोत
वो जरूर ही सफलता पाता है, एक रोज
थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है, साखी सोच
ज्यादा के चक्कर में हुई, बहुतों की मौत
छोड़ देते है, जो व्यक्ति ज्यादा का लोभ
वो सूकुं की जिंदगी पाते, यहां पर बहुत
थोड़ा-थोड़ा कार्य करो, आप तो बस रोज
चेहरे पर सदा ही रहेगा, आपके तो ओज
नाजुक रस्सी पत्थर पर जब चलती, रोज
वो उस पत्थर पर कर देती, एकदिन मोच
बूंद-बूंद जल से जैसे कोई घड़ा भर जाता
वैसे नित थोड़ा-थोड़ा कर्म, कम करता, बोझ
जैसे हम लोग रोज का खाना, खाते है, रोज
गर वैसे ही रोज का कार्य हम कर ले, रोज
फिर तो हम रात्रि को भी बना सकते है, भोर
वो ढूंढता मोती, जो सागर में लगाता नित गोत
एकदिन कठोर पत्थर भी बन जायेगा, मोम
नित कर्म करने की आदत बसा लो, रोम-रोम
जो व्यक्ति थोड़ा-थोड़ा कर्म करता रहता, रोज
वो एकदिन शोलों पर करता, शबनम की खोज