नारी...
नारी...
हाँ मै एक नारी हूँ
जो दुनिया की इस चका चौंद में छिप गई है
जो दुनिया की रसमो को निभाते पिस गई है
जो घर परिवार संभालते खुद की जरूरत भूल गई है
जो बड़े बूढों को देखते खुद के सपने भूल गई
जो बच्चों का देखते देखते खुद को देखना भूल गई
जो टोकरी में समाप्त खाना देखकर खाली पेट सो गई
जो रात का बचा खाना भी खुशी से खाती रही
जो पति की हर चीज हाथ में लाकर
देते खुद की चीजें भूल गई
जो घड़ी से भी तेज रोज मैं भागती हूँ
ना दिन का ख्याल रहता है ना ही रात का
जो है तो वैसे पड़ी लिखी पर सब कुछ
संभालते संभालते खुद कही खो गई
हाँ मैं एक नारी हूँ.
मेरी भी अपनी पहचान है
उडने दीजिए मुझे भी
पिंजरे में कैद मत रखए उड़ने दीजिए
मैं भी एक इंसान हूँ
हाँ मै एक नारी हूँ।