फिर एक पहल रिश्तों के सम्मान की
फिर एक पहल रिश्तों के सम्मान की
आज कल के इस दौर में रिश्तों के
मायने कितने बदल गए है ना
एक वक्त हुआ करता था जब दादा-दादी
की गोद में बैठकर कहानियॉ सुना करते थे
परंतु अभी तो बच्चे मोबाइल
लैपटॉप टीवी में ही रहते हैं दिन भर
जिसके चलते उसका असर
शारीरिक और मानसिक विकास पर होता है
अगर हम अभी यह बात
समझाने जाए तो सुनेगा कौन ?
ना बच्चे सुनेगे ना ही उनके
माता-पिता और कौन समझाए इन्हें
चलिए फिर क्यूँ ना हम खुद से ही शूरुआ
त करे
चलिए तो आज अभी दादा - दादी के पास जाकर
लोरियां कहानियां सुनते हैं उनसे सीख लेते हैं
उनके जीवन के अनुभव को समझते हैं
जिसके चलते हम बहुत कुछ सीख सकते हैं
और कहीं ना कहीं उसके मुताबिक
व्यवहार भी कर सकते हैं
इन सब का अनुभव हमारे साथ हो तो
मुश्किल कम और खुशिया दुगनी हो जाएं
स्वार्थ के हेतु नहीं बल्कि उनका विचार
करते हुए चीजें करनी चाहिए।
जिसके चलते उन्हें खुशी मिलेगी
और हमें उनका प्यार और दुआएँ।